इस विषय के अनुसार लग्न भाव में ११ नंबर लिखा होगा और वही चन्द्रमा विराजमान होंगे साथ में सूर्य सप्तम भाव में जहा पांच नंबर लिखा होगा वहा विराजमान होंगे ! इस परिस्थिति में सूर्य सप्तमेश है और अपनी ही राशि सिंह राशि में होकर सप्तम भाव विराजमान है , इसके फल सवरूप हम कह सकते है जातक की जीवन साथी सरकारी कर्मचारी हो सकती है , अच्छे कुल की हो सकती है , मान सम्मान वाले कुल की हो सकती है , सम्मान्नित परिवार की महिला हो सकती है !
अग्रेसिव और प्रखर वक्तव्य करने की छमता वाली हो सकती है , सूर्य जब सप्तम भाव में होंगे सप्तम भाव में अग्नि तत्व की प्रबलता बढ़ेगी जिसके फलसवरूप जातक का जीवनसाथी के साथ वाद विवाद की स्थिति देखि जा सकती है , पार्टनरशिप में लड़ाई झगडे हो सकते है , इस कॉम्बिनेशन में चन्द्रमा षठेश होकर लग्न भाव में विराजमान है जिसके फलसवरूप जातक मानसिक परेशानियों का शिकार हो सकता है , माता के स्वस्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर देखा जा सकता है , जन सेवा में भागीदारी निभानेवाला हो सकता है , जातक आध्यात्मिक हो सकता है ! वैराग्य की मात्रा उसके अंदर देखि जा सकती है ! माता के प्रति लगाव भी देखा जा सकता है , जन्म स्थान से दूर जाकर जातक रहने वाल्ला हो सकता है ! सूर्य की दृष्टि लग्न भाव पर होने के कारन जातक के व्यक्तित्व में अग्नि तत्व का विस्तार होगा जिसके फलसवरूप हर छेत्र पर अपना नियंत्रण करने की कोशिश करने वाल्ला हो सकता है ! मान सम्मान वाला हो सकता है , अच्छा वक्त , लीडर हो सकता है , अहंकारी , क्रोधी हो सकता है , जातक को मान सम्मान जीवनसाथी के प्रभाव से प्राप्त हो सकता है ! सूर्य की दृष्टि जब चन्द्रमा की होगी उसके फलसवरूप जलतत्व एवं अग्नि तत्व का असंतुलन की स्थिति भी बनेगी जिसके कारन रक्त छाप से सम्बंधित परेशानिया , या ह्रदय रोग से सम्बंधित परेशानिया देखि जा सकती है ! सूर्य की दृष्टि चन्द्रमा पर होने के कारन आत्म विश्वास में अधिकता की स्थिति देखि जा सकती है जिसके कारन जातक कुछ गलत फैसले ले और उसके कारन क़ानूनी मामले में फसने की स्थिति बन सकती है ! सरकरी पक्षों से , पार्टनर से , जीवनसाथी के साथ विवाद के कारन कोर्ट कचहरी से सम्बंधित मामले झेलना पद सकता है !
जातक को इस दृष्टि प्रभाव के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए , शिवलिंग पर जल अभिषेक करना चाहिए , ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए , महा मृतुन्जय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ ) का भी जाप करना चाहिए और गायत्री मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”. )
मिथिलेश सिंह

