मेष लग्न एवं कुम्भ राशि होने पर सूर्य के लग्न भाव में होने के प्रभाव !

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 इस संयोग  में  सूर्य लग्न भाव में अपनी  ऊंच राशि मेष राशि में विराजमान  है , साथ में  पंचम भाव के स्वामी भी सूर्य है  , पंचम भाव का सम्बन्ध लग्न से जुड़ रहा है  ! राशि  कुम्भा होने से चन्द्रमा  अपने से अष्टम भाव में  लग्न  चार्ट के अनुसार  एकादश भाव में बिराजमान हो रहे है  !  

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सूर्य के लग्न भाव में अपनी ऊंच राशि होने के प्रभाव से जातक आत्मविश्वास से भरा  होता है , मान सम्मान पाने वाला  होता है  , सरकारी पक्षों से  लाभ  लेता है  , बड़ा ऊंच अधिकारी बनाने  में सूर्य  की महत्वपूर्ण भूमिका हो जाएगी ! जातक  ऊंच शिक्षा वाला हो सकता है , जातक पिता की बात को मान वाला , जातक के संतान भी  उसकी बात को सम्मान देने वाले होंगे , जातक का जन्म ऊंच कुल में हो सकता है ! जातक एक अच्छा लीडर बन सकता है , प्रखर वक्ता के तौर पर जाना  जा  सकता है ,  शरीर से मजबूत आकर्षक हो सकता  है  !  भरपूर  उत्साह एवं एनर्जी  से भरा  हो सकता है , हारना उसे पसंद नहीं होगा ! रक्चाप , ह्रदय सम्बन्धी , आँखों से सम्बंधित , एसिडिटी से सम्बंधित  परेशानियो  से सावधान  रहने की  आवश्यकता  है  !  खाने में  ठंडी  चीजे  खाना  फायदेमंद होगा  !  जातक  की राशि   कुम्भ  होने के कारन  शनि का प्रभाव मन पर होगा  साथ  में  लग्नेश मंगल है  इसके परिणाम में जातक के जीवन में संघर्ष जुड़ेगा ! जातक  का मन  खोजबीन की प्रविर्ती वाला हो जायेगा  ,  उससे किसी चीज को छुपाना मुश्किल होगा ,  ऐसा जातक  फाइनेंसियल  एक्सपर्ट की  भूमिका  किसी सरकारी बैंक  से जुड़कर निभा सकता  है ,  जातक  जासूस  की  भूमिका में सरकार  के लिए कोई बड़ा कार्य कर सकता है !  ऐसे लोग  राहस्वादि ज्ञान को जानने वाले होते है  ,  गूढ़ ज्ञानी होते है  !   इस संयोग  में जातक के जीवन में  संघर्ष जुड़ेगा  ,    लक्ज़री  जीवन में  कमी  देखि जा सकती है  ,  जातक  वैरागी  प्रविर्ती का हो सकता है  !  

जातक को इस नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए , शिवलिंग पर जल अभिषेक करना चाहिए , ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए , महा मृतुन्जय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ ) का भी जाप करना चाहिए और गायत्री मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”. )

मिथिलेश सिंह

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