सामान्य प्रभाव के तौर पर हम सभी जानते है सूर्य जब मेष राशि में होते है , तो ऊंच के हो जाते है , फलसवरूप सूर्य से मिलने वाला फल श्रेष्ठ फल के रूप में मिलता है ! इस संयोग में सूर्य लग्न भाव में मेष राशि में विराजमान है ! इसके फलसवरूप ऐसा जातक एटीएम विश्वास हे भरा हुआ , तेजस्वी , मजबूत शरीर वाला , आकर्षक व्यक्तित्व वाला , लीडर ,अच्छा प्रखर वक्ता , सरकारी ऊंच अधिकारी होता है ! पिता के सम्मान को बढ़ने वाला एवं ूँछा शिक्षा वाला भी होता है , जातक के संतान उसकी बात को मानाने वाले एवं उसका सम्मान करने वाले होते है ! जतक के व्यक्तित्व पर पिता का विशेष प्रभाव देखा जाता है ! सप्तम भाव पर सूर्य की दृष्टि के कारन जातक का अपने जीवन साथी के साथ एवं साझेदार के साथ विवाद की स्थिति को बनाता है !
ऐसा जातक अपने कुल का नाम रौशन करने वाला होता है ! जातक को रक्तचाप , ह्रदय सम्बंधित समस्याओं से सावधान रहना चाहिए , एसिडिटी एवं आँखों से रिलेटेड समस्याओं से भी सावधान रहना चाहिए ! अहंकार एवं, गुस्से की प्रविर्ती को भी सूर्य बढ़ने का काम करते है ज!तक को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है !
इन सभी सामान्य प्रभाव के अलावा हमें पता चल रहा है की जातक की राशि मं राशि होने के कारण मान पर गुरु का नियंत्रण हो जायेगा जो की सकारात्मक प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है , जातक की राशि जल तत्त्व राशि के अंतर्गत अति है इसलिए ऐसा जतक , बहुत ही उदार , संवेदनशील, कल्पनशील , किसी व्यक्ति के दुःख से बहुत ही ज्यादा प्रभावित एवं दुखी होने वाला होता है ! संवेदना की अधिकता पर सूर्य का लग्न भाव में विराजमान होना संतुलन की स्थिति ! व्यक्तित्वा में जो अग्नि तत्त्व की प्रबलता आएगी सूर्य के लग्न भाव में होने के कारण उस प्रबलता पर जातक की राशि मीन राशि होने से संतुलन की स्थिति बनेगी ! चन्द्रमा अपने से नवम भाव में एवं लग्न चार्ट के अनुसार द्वादश भाव में विराजमान हो रहे है , इसके फलसवरूप जातक का मन विदेश से जुड़ेगा , जातक की माता का सम्बन्ध विदेश से हो सकता है ! जातक विदेश में जाकर कार्य करने वाला हो सकता है ,जातक आध्यात्मिक प्रविर्ती का हो सकता है , जातक कोई बड़ा ऊंच अधिकारी होकर विदेश में राजदूत के तौर कार्य कर सकता है ! जातक के भाग्य उदय की स्थिति विदेश से जुड़ा हुआ हो सकता है ! जो भी प्रभाव बताया गया है ये सभी प्रभाव सामान्य प्रव के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन बाकि सभी गृह की भूमिका महत्वपूर्ण होता है , उन सभी ग्रहो के स्थान एवं स्थिति को देखने के बाद ही संपूर्ण प्रभाव को समझा जा सकता है !
जातक को इस नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए , शिवलिंग पर जल अभिषेक करना चाहिए , ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए , महा मृतुन्जय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ ) का भी जाप करना चाहिए और गायत्री मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”. )
मिथिलेश सिंह

